उफ़ वो मासूम ओ हया-रेज़ निगाहें जिन पर By Sher << चाह का दावा सब करते हैं म... तकल्लुफ़ात की नज़्मों का ... >> उफ़ वो मासूम ओ हया-रेज़ निगाहें जिन पर क़त्ल के बाद भी इल्ज़ाम नहीं आता है Share on: