उस तरफ़ उठते नहीं हाथ जिधर सब कुछ है By Sher << शबनमी क़तरे गुल-ए-लाला पे... यूँ गुज़रते हैं हिज्र के ... >> उस तरफ़ उठते नहीं हाथ जिधर सब कुछ है उस तरफ़ दौड़ते हैं पाँव जिधर कुछ भी नहीं Share on: