वाए क़िस्मत सबब इस का भी ये वहशत ठहरी By वहशत, Sher << आज जब चाँदनी उतरी थी मिरे... तू मुझ से दूर चली जाए ऐन ... >> वाए क़िस्मत सबब इस का भी ये वहशत ठहरी दर-ओ-दीवार में रह कर भी मैं बे-घर निकला Share on: