वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त By Sher << 'वक़ार' ऐ काश मेर... जब पुराना लहजा खो देता है... >> वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त तिरे फ़िराक़ में हम को हँसी बहुत आई Share on: