वहीं बहार-ब-कफ़ क़ाफ़िले लपक के चले By Sher << उफ़ुक़ के आख़िरी मंज़र मे... लज़्ज़त-ए-दर्द मिली जुर्म... >> वहीं बहार-ब-कफ़ क़ाफ़िले लपक के चले जहाँ जहाँ तिरे नक़्श-ए-क़दम उभरते रहे Share on: