विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह By Sher << ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उ... सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों ... >> विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह मेरे दिल पर दाँत है अल्लाह की तश्दीद का Share on: