'मुहिब' तुम बुत-परस्ती को न छोड़ो By Sher << एक ही नद्दी के हैं ये दो ... यूँ भी तिरा एहसान है आने ... >> 'मुहिब' तुम बुत-परस्ती को न छोड़ो तुम्हारा याँ हुवैदा होएगा रब Share on: