वो धूप थी कि ज़मीं जल के राख हो जाती By Sher << अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने ... दास्ताँ उन की अदाओं की है... >> वो धूप थी कि ज़मीं जल के राख हो जाती बरस के अब के बड़ा काम कर गया पानी Share on: