यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की By Sher << पौ फटते ही 'रियाज़... दें जिसे चाहें दिल हमारा ... >> यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की यही दिल कार-गह-ए-शीशा-गिराँ होता है Share on: