यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या By Sher << न जी भर के देखा न कुछ बात... शहर की गलियों में गहरी ती... >> यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक Share on: