यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ By Sher << ख़्वाब में नाम तिरा ले के... वो कहीं भी गया लौटा तो मि... >> यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ अब के ख़ुद अपनी हवाओं में बुझा चाहती है Share on: