हक़ीक़तों से मफ़र चाही थी 'यशब' मैं ने By Sher << जो सुख के उजाले में था पर... हर आँख इक सवाल तही-दस्त क... >> हक़ीक़तों से मफ़र चाही थी 'यशब' मैं ने पर अस्ल अस्ल रहा और ख़्वाब ख़्वाब रहा Share on: