ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ By Sher << मिलना जो न हो तुम को तो क... तख़लीक़-ए-काएनात के दिलचस... >> ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ सो अंदर से पिघलता जा रहा हूँ Share on: