ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को By Sher << मिरे वास्ते जाने क्या लाए... निहाल-ए-दर्द ये दिन तुझ प... >> ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को जो करते आए हैं इंसाँ न करते हम तो क्या करते Share on: