ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता By Sher << क्या अदा से आवे है दीवाना... वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बू बिख... >> ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता Share on: