ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है By Sher << अब अपना इंतिज़ार रहेगा तम... शाम होते ही तेरे हिज्र का... >> ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है कि ख़्वाब फूलते हैं और ज़ख़्म फलते हैं Share on: