ये रौशनी यूँही आग़ोश में नहीं आती By Sher << ज़िंदगी भर दर-ओ-दीवार सजा... मालूम हुआ कैसे ख़िज़ाँ आत... >> ये रौशनी यूँही आग़ोश में नहीं आती चराग़ बन के मुंडेरों पे जलना पड़ता है Share on: