यूँ भी मिली है मुझ को मिरे ज़ब्त-ए-ग़म की दाद By Sher << एक बस्ती थी हुई वक़्त के ... इश्क़ की तमन्ना थी इश्क़ ... >> यूँ भी मिली है मुझ को मिरे ज़ब्त-ए-ग़म की दाद अक्सर वो सर झुकाए हुए मुस्कुराए हैं Share on: