शब-भर का तिरा जागना अच्छा नहीं 'ज़ेहरा' By Sher << शाम ढले आहट की किरनें फूट... साअतें जो तिरी क़ुर्बत मे... >> शब-भर का तिरा जागना अच्छा नहीं 'ज़ेहरा' फिर दिन का कोई काम भी पूरा नहीं होता Share on: