तीन मोटी औरतें

एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी के दिन मज़े से कट रहे थे।
मिसेज़ सतलफ़ के ख़द्द-ओ-ख़ाल मोटापे की वजह से भद्दे पड़ गए थे। उसकी बाहें कंधे और कूल्हे भारी मालूम होते थे। लेकिन इस उधेड़ उम्र में भी वो बन-संवर कर रहती थी। वो नीला लिबास सिर्फ़ इसलिए पहनती थी कि उसकी आँखों की चमक नुमायाँ हो और बनावटी तरीक़ों से उसने अपने बालों की ख़ूबसूरती भी क़ायम रखी थीं।

उसे मिसेज़ रिचमेन और मिस बेकन इसलिए पसंद थीं कि वो दोनों उसकी निस्बत मोटी थीं और चूँकि वो उम्र में भी उनसे क़दरे छोटी थी इसलिए वो उसे अपनी बच्ची की तरह ख़याल करतीं। ये कोई नापसंदीदा बात न थी। वो दोनों ख़ुश तबीयत थीं। अक्सर तफ़रीहन उसके होने वाले मंगेतर का ज़िक्र छेड़ देती।
वो ख़ुद तो इस इश्क़-ओ-मुहब्बत की उलझन से कोसों दूर थीं लेकिन इस मुआमले में उन्हें मिसेज़ सतलफ़ से पूरी हमदर्दी थी। उन्हें यक़ीन था कि वो दिनों ही में कोई नया गुल खिलाने वाली है।

वो उसके लिए किसी अच्छे बर की तलाश में थीं। कोई पेंशन याफ़्ता एडमिरल जो गोल्फ भी खेलना जानता हो या कोई ऐसा रंडुवा जो घर बार के जंजाल से आज़ाद हो। बहरहाल ये ज़रूरी था कि उसकी आमदनी माक़ूल हो। वो बड़े ग़ौर से उनकी बातें सुनती और दिल ही दिल में हँस देती।
इसमें कोई शक नहीं कि वो एक बार फिर शादी का तजुर्बा करना चाहती थी। लेकिन शौहर के इंतिख़ाब में उसका मिज़ाज मुख़्तलिफ़ था। उसे किसी स्याह रंग छरेरे बदन के अतालवी की चाहत थी, जिसकी आँखें हद दर्जा चमकीली हों या कोई हिस्पानवी जो आला ख़ानदान से तअल्लुक़ रखता हो और उसकी उम्र किसी सूरत में तीस बरस से एक दिन भी ज़्यादा न हो।

ये सच है कि तीनों एक दूसरी पर जान देती थीं और उनकी आपस में मुहब्बत की वजह सिर्फ़ मोटापा था। और मुतावातिर इकट्ठे ब्रिज खेलने से दोस्ती और गहरी होगई थी। उनकी पहली मुलाक़ात करबसाद में हुई, जहाँ ये एक ही होटल में ठहरी थीं और एक डाक्टर के जे़रे ईलाज थीं।
मिसेज़ रिचमेन ख़ुश शक्ल भी थी। उसकी नशीली आँखें, खुरदरे गाल और रंगीन होंट बहुत ही दिलफ़रेब और दिलकश थे। उसे हर वक़्त खाने-पीने की फ़िक्र रहती। मक्खन, बालाई, आलू और चर्बी मिली पुडिंग उसका मन भाता खाना था। वो साल में ग्यारह महीने तो जी भर कर काफ़ी खाती और फिर ईलाज के ज़रिये दुबली होने के लिए एक महीना करबसाद चली जाती। वो दिन-ब-दिन फूलती जा रही थी।

उसका अक़ीदा था कि अगर उसे मन मर्ज़ी की ख़ुराक खाने को न मिले तो ज़िंदगी बेकार है। मगर उसके डाक्टरों को इस बात से इत्तिफ़ाक़ न था। मिसेज़ रिचमेन का ख़याल था कि डाक्टर कुछ ऐसा क़ाबिल नहीं वर्ना क्या अजीब था कि वो ज़रा दुबली हो जाती। उसने मिस बेकन से इस बात का ज़िक्र किया। वो बस एक क़हक़हा लगा कर ख़ामोश हो गई। उसकी आवाज़ बहुत गहरी थी। और चिपटा सा चेहरा! उसकी दोनों आँखों में बिल्ली की आँखों जैसी चमक थी।
उसे मर्दाना पोशाक ज़्यादा पसंद थी और सिर्फ़ उसकी ख़ुश मिज़ाजी की वजह से तीनों सहेलियाँ एक दूसरी से बहुत क़रीब हो गई थीं। वो तीनों एक ही वक़्त पर खाना खातीं, इकट्ठी सैर को जातीं और टेनिस खेलने के वक़्त भी एक दूसरी से कभी जुदा न होतीं।

इसमें कोई शक नहीं कि वो अपना वज़न करतीं तो अपने मोटापे में कोई फ़र्क़ न पाकर उदास सी हो जातीं। मिस बेकन को ये बात बहुत ही नागवार गुज़री कि बियर्स रिचमेन तिब्बी ईलाज से अपना वज़न बीस पौंड घटा कर बद परहेज़ी की वजह से दिनों में फिर उसी तरह मोटी होजाए और उसके कहने पर तीनों करबसाद छोड़कर चंद हफ़्तों के लिए कहीं और चली जाएँ।
बियर्स कमज़ोर तबीयत थी और उसे एक ऐसे इंसान की ज़रूरत थी जो उसे बद एतिदाली से बचा सके। उसे यक़ीन था कि अब उसे वर्ज़िश करने का ख़ूब मौक़ा मिलेगा। न सिर्फ़ यही बल्कि वहाँ घर में अपनी बावर्चन रख लेने से उसे चर्बी मिली चीज़ें खाने से नजात मिल जाएगी। और कोई वजह न थी कि इन सब का वज़न दिनों में कम हो जाये।

मिसेज़ सतलफ़ अपने घर में अनोखे इरादे बाँध रही थी। उसे यक़ीन था कि वहाँ दिनों में उसका रंग निखर जाएगा और अपने लिए कोई छैला बांका अतालवी फ़्रांसीसी या अंग्रेज़ तलाश करेगी। वो तीनों हफ़्ते में सिर्फ़ दो दिन उबले हुए अंडे और टमाटर खातीं और हर सुबह उठ कर अपना वज़न करतीं। मिसेज़ सतलफ़ का वज़न अभी सिर्फ़ 154 पौंड रह गया और वो तो गोया अपने आप को एक जवाँ साल लड़की समझने लगी।
मिसेज़ बेकन और मिसेज़ रिचमेन के मोटापे में भी काफ़ी फ़र्क़ पड़ गया। वो तीनों मुतमइन नज़र आती थीं। लेकिन ब्रिज खेलने के लिए एक चौथे खिलाड़ी की ज़रूरत ने उन्हें एक हद तक परेशान सा कर दिया।

वो सुबह सवेरे ढीले-ढाले पाजामे पहने चबूतरे पर बैठी दूध में खांड मिलाए बगैर चाय पी रही थीं और साथ साथ डाक्टर बर्ट के तैयार किए हुए बिस्कुट भी खा रही थीं, जिनके मुतअल्लिक़ ये गारंटी दी गई थी कि वो चर्बी से बिल्कुल पाक हैं। नाशते के वक़्त मिस बेकन ने इत्तिफ़ाक़न लीना का ज़िक्र किया।
“वो कौन है?” मिसेज़ सतलफ़ ने पूछा।

“वो मेरे उस चचेरे भाई की बीवी है, जिसका हाल ही में इंतिक़ाल हुआ है। वो गुज़िश्ता दिनों आसाब शिकनी का शिकार रही। क्यों न उसे दो हफ़्ते के लिए यहाँ बुला लें?”
“क्या वो ब्रिज खेलना जानती है?”

“क्यों नहीं... उसके यहाँ आने से किसी दूसरे की ज़रूरत भी न रहेगी।”बात तय होगई... लीना को बुलाने के लिए तार भेजा गया और वो तीसरे दिन आ पहुंची।मिस बेकन उसे स्टेशन पर लेने गई। शौहर की मौत की वजह से लीना के चेहरे पर ग़म के आसार नुमायाँ थे।
मिस बेकन ने उसे दो साल से नहीं देखा था। इसलिए बड़ी गर्मजोशी से उसका मुँह चूम लिया, “तुम बहुत दुबली हो।”। उसने कहा।

लीना मुस्कुरा दी।
“गुज़िश्ता दिनों मेरी तबीयत अलील रही और अब तो वज़न भी बहुत कम होगया है।”

मिस बेकन ने एक सर्द आह भरी, लेकिन ये ज़ाहिर न हो सका कि उसकी वजह रश्क थी या लीना से हमदर्दी। वो उसे एक पुर फ़िज़ा होटल में ले गई। जहाँ दोनों सहेलियों से उसका तआरुफ़ कराया गया।
उसकी बेकसी देख कर मिसेज़ रिचमेन का दिल भर आया और उसके चेहरे की ज़र्दी ने मिसेज़ सतलफ़ को भी बहुत मुतअस्सिर किया। होटल में थोड़ी देर तफ़रीह के बाद वो लंच के लिए अपनी क़्यामगाह को चल दीं।

“मुझे कुछ रोटी चाहिए।”
लीना के ये अल्फ़ाज़ सहेलियों के कानों पर बहुत गिराँ गुज़रे। वो तो दस साल हुए उसे छोड़ चुकी थी, हालाँकि मिसिज़ रिचमेन ऐसी लालची औरत भी रोटी से परहेज़ करती थी। मिसेज़ बेकन ने अज़राह मेहमान नवाज़ी ख़ानसामाँ से कहा कि फ़ौरन हुक्म की तामील करे।

“थोड़ा मक्खन भी...’’
किसी ग़ैर मरई क़ुव्वत ने एक लम्हे के लिए उन सब के होंट सी दिये।

“ग़ालिबन घर में मक्खन मौजूद नहीं। अभी ख़ानसामाँ से पूछती हूँ।” मिस बेकन ने किसी क़दर तवक्कुफ़ से जवाब दिया।
“मक्खन रोटी बहुत पसंद है।” लीना ने मिसेज़ रिचमेन से मुख़ातिब होकर कहा और ख़ानसामाँ से रोटी लेकर बड़े इत्मिनान से उसपर मक्खन लगाया।

मिस बेकन बोली,“हम यहाँ बहुत सादा ग़िज़ा की आदी हैं।”
लीना ने मछली के टुकड़े पर मक्खन लगाते हुए कहा, “मुझे जब तक मक्खन, रोटी आलू और बालाई मिलती रहे बहुत मुतमइन रहती हूँ।”

“अफ़सोस कि यहाँ कहीं बालाई नहीं मिलती।” मिसेज़ रिचमेन ने कहा।
“ओह...” लीना बोली।

लंच पर बग़ैर चर्बी के कबाब चुने गए। इसके अलावा पालक थी और दम बख़्त नाशपातियाँ भी। नाशपाती खाते ही लीना ने मुतजस्सिस नज़रों से ख़ानसामां की तरफ़ देखा और इशारा पाते ही ख़ानसामां खांड लेकर हाज़िर हो गया। उसने अपनी क़हवा की प्याली में तीन चमचे खांड डाल दी।
“तुम्हें खांड बहुत पसंद है।” मिसेज़ सतलफ़ ने कहा।


“हमें तो सेक्रीन ज़्यादा मर्ग़ूब है।” मिस बेकन ने एक टिकिया अपनी प्याली में डालते हुए कहा।

“ये तो एक बे लज़्ज़त शय है।” लीना ने जवाब दिया।
मिसेज़ रिचमेन मुँह बना कर और ललचाई हुई नज़रों से खांड की तरफ़ देखने लगी। मिस बेकन ने उसे ज़ोर से पुकारा और एक सर्द आह भर कर उसने भी मजबूरन सेक्रीन की टिकिया उठा ली।

लंच से फ़ारिग़ होने के बाद वो ब्रिज खेलने लगीं। लीना ख़ूब खेली। सबने खेल का लुत्फ़ उठाया। मिसेज़ सतलफ़ और मिसेज़ रिचमेन के दिल में मुअज़्ज़ज़ मेहमान के लिए गहरी हमदर्दी का जज़्बा पैदा हो गया। मिस बेकन के दिल की मुराद भी बर आई। और वो यही तो चाहती थी कि लीना उनके साथ दो हफ़्ते ख़ुशी से बसर करे।
चंद साअत बाद मिस बेकन और मिसेज़ रिचमेन गोल्फ़ खेलने चली गई और मिसेज़ सतलफ़ एक जवाँ साल, ख़ुश शक्ल प्रिंस रोकामीर के साथ सैर को निकल गई। लेकिन कुछ देर सुस्ताने के ख़याल से लेट गई। डिनर से थोड़ा सा वक़्त पहले सब लौट आईं।

“लीना प्यारी, कहो वक़्त कैसे गुज़रा।” मिस बेकन ने कहा, “गोल्फ़ खेलते वक़्त ध्यान तुम्हारी ही तरफ़ था।”
“ओह, मैं तो बड़े मज़े से बिस्तर पर ही पड़ी रही और जा कर कॉकटेल भी पी और सुनो... आज एक छोटा सा क़हवाख़ाना पर मेरी नज़र पड़ी, जहाँ बड़ी अच्छी बालाई भी मिल सकती है। मैंने रोज़ाना मकान पर बालाई मँगवाने का इंतिज़ाम कर लिया है।”

उसकी आँखें चमक रही थीं और उसे यक़ीन था कि वो तीनों उसकी बात को सराहेंगी।
“तुम कितनी अच्छी हो लीना,” मिसेज़ बेकन ने कहा, “लेकिन अफ़सोस कि हमें बालाई पसंद नहीं। ऐसी आब-ओ-हवा में ये हमें रास नहीं आ सकती।”

“न सही, मैं जो सलामत हूँ।” लीना ने मुस्कुराते हुए कहा।
“तुम्हें क्या अपनी शक्ल-ओ-सूरत की कोई परवा नहीं।” मिसेज़ सतलफ़ ने मुँह बना कर कहा।

“मुझे तो डाक्टर ने बालाई खाने को कहा है।”
“क्या उसने मक्खन, रोटी, आलू और चारों ही चीज़ें तजवीज़ की हैं?”

“बेशक, तुम्हारी सादी ग़िज़ा से मैं यही मुराद लेती हूँ।”
“तुम यक़ीनन बहुत मोटी हो जाओगी।” लीना खिलखिला कर हंस दी।

रात को उसके सो जाने पर देर तक तीनों नुक्ताचीनी करती रहीं। आज शाम उनकी तबीयत कितनी शगुफ़्ता थी लेकिन अब मिसेज़ रिचमेन बेज़ार सी नज़र आने लगी। मिसेज़ सतलफ़ अलग जली बैठी थी। और मिस बेकन का मिज़ाज भी बरहम हो चुका था।
“मैं क़तअन बर्दाश्त नहीं कर सकती कि वो मेरा मन भाता खाना मेरी आँखों के सामने बैठ कर उड़ाए।” मिसेज़ रिचमेन ने ज़रा तल्ख़ी से कहा।

“ये तो कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।” मिस बेकन ने जवाब दिया।
“आख़िर तुमने उसे यहां बुलाया ही क्यों?”

“मुझे इस बात की क्या ख़बर थी।”
“अगर उसके दिल में अपने मरहूम शौहर का ज़रा भी ख़याल होता तो वो कभी पेट भर कर न खाती... उसे फ़ौत हुए अभी दो महीने तो गुज़रे हैं।”

“अजीब मेहमान है कि उसे हमारी मर्ज़ी का खाना ही पसंद नहीं।”
“सुना, वो कल क्या कह रही थी, उसे डाक्टर ने मक्खन रोटी, आलू और बालाई खाने को कहा है।”

“उसे तो फिर किसी सेनोटोरियम का रुख़ करना चाहिए।”
“वो मेहमान है तो तुम्हारी। हमारा तो उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं तो मुतावातिर दो हफ़्ते तक उस पेटू का तमाशा देखती रही हूँ।”

“सिर्फ़ खाने-पीने को ज़िंदगी का मक़सद समझ लेना बड़ी बेहूदगी है।”
“तुम क्या मुझे बेहूदा पुकार रही हो।” मिसेज़ सतलफ़ ने कहा।

“आपस में बदगुमानी से फ़ायदा?” मिसेज़ रिचमेन ने बात काट कर कहा।
“मैं हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकती कि तुम हमारे सोते में बावर्चीख़ाना में घुस कर खाती-पीती रहो।”

इन अल्फ़ाज़ ने मिस बेकन के तन-बदन में एक आग लगा दी। वो उछल कर खड़ी होगई। “मिसेज़ सतलफ़ अपनी ज़बान सँभालो। तुम क्या मुझे इतना ही कमीना ख़याल करती हो।”
“आख़िर तुम्हारा वज़न क्यों नहीं कम होता।”

“बिल्कुल ग़लत, मेरा तो सेरों वज़न कम होगया है।”वो बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगी और आँसू उसकी आँखों से टपक टपक कर छाती पर गिरने लगे।
“प्यारी तुम मेरा मतलब नहीं समझीं...”

ये कह कर मिसेज़ सतलफ़ घुटनों के बल झुकी और उसके जिस्म को अपनी आग़ोश में लेने की कोशिश की। उसका भी दिल भर आया और आँखों से आँसूओं की लड़ी जारी होगई।
“तो क्या मैं दुबली दिखाई नहीं देती।” मिस बेकन ने हिचकी लेते हुए कहा।

“हाँ बेशक...” मिसेज़ सतलफ़ ने भर्राई हुई आवाज़ में जवाब दिया।
मिसेज़ रिचमेन भी जो फ़ित्रतन निहायत कमज़ोर तबीयत वाक़ा हुई थी, अब रोने लगीं। ये मंज़र बहुत रिक्क़त ख़ेज़ था। मिस बेकन ऐसी औरत को आँसू बहाते देख कर संग दिल इंसान भी मोम हो जाता।

बिलआख़िर उन्होंने अपने आँसू पोंछे और एक ने ब्रांडी और पानी के चंद घूँट पिए। वो अब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थीं कि लीना डाक्टर की हिदायत के मुताबिक़ अपनी मन मर्ज़ी की ग़िज़ा खाए। आख़िर वो उनकी मेहमान ठहरी। उनका फ़र्ज़ था कि हर तरह उसका कलेजा ठंडा करें। उन्होंने एक दूसरी का गर्मजोशी से मुँह चूमा और अपनी अपनी ख़्वाबगाहों में चली गईं।
ये सच है कि इंसानी फ़ितरत बहुत कमज़ोर है और उस पर किसी का कोई इख़्तियार नहीं। ग़िज़ा के मुआमले में अब हर एक अपनी मर्ज़ी की मालिक थी।

उन्होंने मछली के कबाब शुरू किए तो लीना की सिवय्यां मक्खन और पनीर पर बसर होने लगी। वो हफ़्ते में दो बार उबले हुए अंडे और कच्चे टमाटर खातीं। लीना मटर के दाने बालाई में मिला कर खाती। उसे अब टमाटर को मुख़्तलिफ़ मसालों में पका कर खाने का शौक़ चर्राया था। उसका ख़ानसामां भी बड़ा बा मज़ाक था। वो हर बार एक बेहतर चीज़ तैयार करके मेज़ पर चुन देता।
लीना ने एक मौक़े पर ये भी कहा कि “डाक्टर ने उसे लंच पर बरगंडी की अर्ग़वानी शराब और डिनर पर शम्पैन इस्तिमाल करने को कहा है।” इन अल्फ़ाज़ ने तीनों सहेलियों को दम बख़ुद कर दिया। वो अभी अभी हंस खेल रही थीं लेकिन यकायक कैफ़ियत बदल गई।

मिसेज़ रिचमेन का तो गोया रंग ज़र्द पड़ गया। मिसेज़ सतलफ़ की नीली आँखों में एक ख़ौफ़नाक सी चमक पैदा होगई और मिस बेकन की आवाज़ भर्रा गई। ब्रिज खेलते वक़्त वो बड़े नर्म लहजे में एक दूसरे से बात क्या करतीं। लेकिन अब बात बात पर बिगड़ने लगीं।
लीना ने उन्हें बहुतेरा समझाया बुझाया कि खेल के वक़्त आपस में तकरार मुनासिब नहीं। लेकिन बे सूद। वो ख़ुश थी कि खेल में शुरू ही से उसका पल्ला भारी रहा है और दिनों में उसने एक बड़ी रक़म जीत ली है। तीनों मोटी सहेलियों को अब एक दूसरी से नफ़रत होने लगी। वो अपने मेहमान से भी बदज़न हो चुकी थीं।

इसके बावजूद अक्सर एक दूसरी के ख़िलाफ़ कान भरतीं। लीना के सामने वो एक दूसरी से ज़ाहिरन मिलती रहीं, लेकिन फिर ये बात भी न रही। वो एक दूसरी से बहुत मायूस हो चुकी थीं। मिस बेकन लीना को रुख़्सत करने स्टेशन पर गई।
गाड़ी पर सवार होते वक़्त वो बोली,“मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं कि तुम्हारी मेहमान नवाज़ी का शुक्रिया अदा कर सकूं…”

“तुम्हारी सोहबत बहुत पुरलुत्फ़ रही...” मिस बेकन ने जवाब दिया।
जब गाड़ी रवाना हुई तो उसने इस ज़ोर से आह भरी कि प्लेटफार्म उसके पांव के नीचे काँप काँप गया और वो “उफ़ उफ़” का शोर बुलंद करती घर लौटी।

उसने ग़ुस्ल करने का लिबास पहना और होटल की तरफ़ आ निकली। एका एकी वो मचल सी गई। उसकी आँखों के सामने मिसेज़ रिचमेन नया पायजामा और गले में मोतियों की माला पहने, बनाव सिंघार किए बैठी थी।
वो उसकी तरफ़ बढ़ी,“क्या कर रही हो?”

उसके ये अल्फ़ाज़ दो पहाड़ों में बादल की गरज की तरह सुनाई दिए।
“कुछ खा रही हूँ।”

उसके सामने मक्खन, सेब का मुरब्बा, क़हवा और बालाई वग़ैरा चुने हुए थे, वो गर्म रोटी पर मक्खन की मोटी तह जमा कर उस पर मुरब्बा और बालाई डाल रही थी।
“तुम खाने की लालच में अपनी जान दे दोगी।”

“कोई परवा नहीं।” मिसेज़ रिचमेन ने एक बड़ा लुक़्मा चबाते हुए कहा।
“तुम और भी मोटी हो जाओगी।”

“बस ख़ामोश, उस नाबकार को ख़ुदा समझे जिसे मैं मुतावातिर दो हफ़्ते से हलक़ में रंगा-रंग के निवाले ठूंसते देखती रही हूँ। एक इंसान तो इतना हज़म नहीं कर सकता।”
मिस बेकन की आँखों में आँसू आगए। वो बिल्कुल बेजान सी होगई। उसे उस वक़्त शायद एक मज़बूत मर्द की ज़रूरत थी जो उसे घुटने पर लगा कर पुचकारे। वो ख़ामोशी से पास ही कुर्सी पर बैठ गई। ख़ादिम हाज़िर हुआ और उसने क़हवे की तरफ़ इशारा करके उसे लाने को कहा।

वो हाथ बढ़ा कर क्रीम रोल उठाने लगी। लेकिन मिसेज़ रिचमेन ने रिकाबी एक तरफ़ रख दी। मिस बेकन जल-भुन गई और उसे एक ऐसे नाम से मुख़ातिब किया जो ख़ासतौर पर औरतों के शायान-ए-शान न था... इतने में ख़ादिम उसके लिए मक्खन, मुरब्बा और क़हवा लिये आया।
“पगले, बालाई लाना भूल गया...” वो शेरनी की तरह बिफर कर बोली।

उसने खाना शुरू किया और हलक़ में मक्खन, मुरब्बा ठूंसने लगी। होटल में अब रंगा-रंग के इंसानों की चहल पहल नज़र आने लगी। मिसेज़ सतलफ़ भी प्रिंस रोकामीर के साथ चहल-क़दमी करती इधर आ निकली। वो पहले अपने गिर्द एक रेशमी लिबादा मज़बूती से लपेटे हुई थी ताकि इस तरह वो कुछ दुबली दिखाई दे।
अपनी ठोढ़ी का नुक़्स छुपाने के लिए उसने सर को ऊपर उठाया हुआ था। वो बहुत मसरूर थी... एक दोशीज़ा की तरह। प्रिंस उससे इजाज़त ले कर पाँच मिनट के लिए मर्दाना कमरे में अपने बाल संवारने गया और वो भी अपने रुख़सारों को ग़ाज़ा चमकाने के लिए ज़नाना कमरे की तरफ़ आई। एका एकी उसकी नज़र अपनी दोनों सहेलियों पर पड़ी, वो रुक गई।

“तुम पेटू हैवान…”
वो कुर्सी पर बैठ गई और ख़ादिम को आवाज़ दी। उसके ज़ेहन से अब प्रिंस का ख़याल भी उतर चुका था। आँख झपकते में ख़ादिम हाज़िर होगया।“मेरे खाने को भी यहीं लाओ।”

“और मेरे लिए सिवय्यां...”
“मिस बेकन!” मिसेज़ रिचमेन पुकार उठी।

“बस ख़ामोश ।”
“तो मैं भी यही खाऊंगी।”

क़हवा लाया गया और क्रीम रोल और बालाई भी। वो गर्म रोटी पर बालाई तह जमा कर खाने लगीं। मुरब्बे के बड़े चमचे हलक़ में ठूंस लिये। वो गोया एक ख़ास एहतिमाम से खा रही थीं। ऐसे मौक़ा पर मिसेज़ सतलफ़ के लिए प्रिंस से लगाव एक बेमअनी बात थी।
“मैंने पच्चीस साल से आलू नहीं खाए,” मिस बेकन ने धीमी आवाज़ में कहा।

मिसेज़ रिचमेन ने फ़ौरन ख़ादिम को तीनों के लिए भुने हुए आलू लाने को कहा।
एक लम्हे के बाद भुने हुए आलू उनके सामने थे और वो बड़े चटख़ारे लेकर खाने लगीं। तीनों सहेलियों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और सर्द आहें भरने लगीं। अब उनके दरमियान ग़लत फ़हमी रफ़अ हो चुकी थी। और दिलों में इंतिहाई मुहब्बत का जज़्बा मोजज़न था। उन्हें यक़ीन न आता था कि आज से पहले वो एक दूसरे से क़ता-ए-तअल्लुक़ पर आमादा हो चुकी थीं। आलू अब ख़त्म हो चुके थे।

“होटल में चॉकलेट तो ज़रूर होंगे।” मिसेज़ रिचमेन ने कहा।
“क्यों नहीं।”

एक लम्हा बाद मिस बेकन अपना मुँह खोले हलक़ में चॉकलेट ठूंस रही थी। उसने दूसरे पर हाथ डाला और मुँह में डालने से पहले दोनों सहेलियों की तरफ़ नज़र उठाए नाबकार लीना को कोसने लगी।
“तुम जो चाहो कहो लेकिन ये हक़ीक़त है कि वो ब्रिज खेलना नहीं जानती ।”

“बेशक।” मिसेज़ सतलफ़ ने इत्तिफ़ाक़ करते हुए कहा।
मिसेज़ रिचमेन का ज़ेहन उस वक़्त किसी लज़ीज़ केक की फ़िक्र में था।




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