शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं Admin नई सुबह शायरी, अन्य << हम तो ठहरे ही रहे झील के ... अगर तेरे कलम की स्याही खत... >> शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं,इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं… Share on: