रात वो ख्वाब में आईपरी का लिबास थाजादू की छड़ी थी, हाथ मेंछू गयी मुझे औरख्वाबो के ख्वाब में ले गयीवापिस आना नामुमकिन थाख्वाब से तो वापिस आ गया हूँउस ख्वाब में रहने कीसज़ा सुना दी हैउम्र भर कैद रहने कीआजादी अब मुझे भी भाती नहींउसके आगोश में हूँतकदीर लिख दी है उसनेवो खामोश हैं, हम बेजुबांउनकी आँखों में,खुद को देखते हैंकुछ कहते नहीं वो समझ लेते हैं