ये प्रेम क्या है,मैंने कभी जाना ही न था ,,,,,,उस दिन, तू, अपनी छत परबाल सुखा रही थीसर झुका था तेरानज़र तेरी ज़मीन पर न थीमेरी ओर थी अनायासकेशों को तू झाडती थीपानी के छींटे उड़ते फुहारतभी देखा था, तुझे पहली बारतेरी मनमोहक छविफुहारी इंद्रधनुष के मध्यमैं देखता रह गयाउलझ गया तेरे नैनों सेतभी से, मुझे कुछ हो गया हैसतरंगा इंद्रधनुष भी उस दिनशरमा के झुक गयातेरी निगाहों का तिलिस्मतू मुझे न देखती, तो शायदमेरे ये हालात न होतेलोग कहते हैं, मुझे अब दीवाना