एक खामोश मुसाफिर सा कोई छू गया है मुझे साहिर सा कोई घूमकर देखा जब शहर की Admin शायरी साहिर लुधियानवी, ग़ज़ल << दर्द ही इश्क की हकीकत है ... "अजनबी रहुँ मैं " "अब खुद... >> एक खामोश मुसाफिर सा कोईछू गया है मुझे साहिर सा कोईघूमकर देखा जब शहर की तरफदूर तक था खड़ा पत्थर सा कोईआईना नींद से जागा था तभीजब उसे तोड़कर गया था कोईठहर गई है आंख में दरियाइसके आगे है झरना सा कोई Share on: