अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जुदाई मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़... >> अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें! Share on: