हुए बदनाम मगर फिर भी न सुधर पाए हम,फिर वही शायरी, फिर वही इश्क, फिर वही तुम.”सालो साल बातचीत से उतना सुकून नही मिलता,जितना एक बार महबूब के गले लग कर मिलता है....!!वो भी क्या दिन थे जब "बेचैन" होता था तेरे घर के सामने,साइकिल की चैन उतार कर तुझे चैन से देखता था..