सुनी हैं राहे मंजिल का पता नहीं कारवाँ गुज़र गया साथियों का कोई पता नहीं किसको कहूँ अपना रिश्तों का Admin जिंदगी और शायरी, दर्द << एक रिश्ता तुझसे था बहुत प... पुकारती है ख़ामोशी मेरी फ... >> सुनी हैं राहेमंजिल का पता नहींकारवाँ गुज़र गयासाथियों का कोई पता नहींकिसको कहूँ अपनारिश्तों का कोई पता नहींगर्दिश मैं हैं तारेकिस्मत का पता नहींजिंदगी हो गयी ख़त्ममौत का कहीं कोई पता नहींमंदिर मस्जिद बहुत हैं लेकिनउस रब का कहीं पता नहीं Share on: