तुम अपने झूठ को कितने दिनों आबाद रक्खोगे समय लगता नहीं है बर्फ़ के ढेले पिघलने Admin ज़िन्दगी शायरी हिन्दी, दर्द << ये हुनर आते आते आया है अब... तुम रहो हम से दूर तो इक क... >> तुम अपने झूठ को कितने दिनों आबाद रक्खोगेसमय लगता नहीं है बर्फ़ के ढेले पिघलने मेंन जाने ज़िन्दगी के नाज़-नखरे कैसे झेलोगेगुरूर इस रात का भी टूटने पर आ गया देखोज़रा सी देर है अब तो दिन निकलने में Share on: