सच छुपा-छुपा के Admin ताश के पत्ते शायरी, प्रेम << कैसे भुला दू उसको यूनानी मिश्र और रोमी सब म... >> सच छुपा-छुपा के, ऐसा महसूस होता है के मै अपने अन्दर ही अन्दर घुट-घुट के मर रहा हूँ,अन्दर ही अन्दर स़ड़ रहा हूँ,पेड़ मे लगे पत्ते जैसा झड़ रहा हूँ,जलती लौ मे जैसे कड़ रहा हूँ,ऐ खुदा मेरे जुल्मो को मिटा दे , मुझे सच बस सच की राह मैं बिठा दे | Share on: