चली जाती है आये दिन वो बियुटी पार्लोर में यूं हास्य << उम्मीदों की समां दिल में ... कैसे मुमकिन था किसी और दव... >> चली जाती है आये दिन वो बियुटी पार्लोर में यूंउनका मकसद है, "मिशाल-ए-हूर" हो जानामगर ये बात किसी भी बेगम की समझ में क्यों नहीं आतीकि मुमकिन नहीं 'किशमिश' का फिर से 'अंगूर' हो जाना। Share on: