जिन के शाम-बदन साये में मेरा मन सुस्ताया थाअब तक आँखों के आगे वो बाल घनेरे फिरते हैंकोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यों रीझ गयातीखी चितवन बाँकी छब वाले बहुतेरे फिरते हैंइस नगरी में बाग़ और बन की यारो लीला न्यारी हैपंछी अपने सर पे उठाकर अपने बसेरे फिरते हैंलोग तो दामन सी लेते हैं जैसे हो जी लेते हैंहम दीवाने हैं तेरे जो बाल बिखेरे फिरते हैं