अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ ...
था कोई या नहीं था जो कुछ था ...
मंज़िलें एक सी आवारगियाँ एक सी हैं ...
कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी ...
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे ...
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा ...
शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है ...
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है ...
वो मिरी जुराअत-ए-कमयाब से ना-वाक़िफ़ हैं ...
उन की हर बात ही उर्दू में सनद है हद है ...
मोहब्बत को रिया की क़ैद से आज़ाद करना है ...
अब न छूटेगा कभी सात जनम का बंधन ...
चमन में आमद-ए-रंगीनी-ए-नुमू कहिए ...
बस हर इक रात यही जुर्म किया है मैं ने ...
चलेगा नहीं मुझ पे फ़ुक़रा तुम्हारा ...
सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती ...
चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की ...
उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए ...