सभी हिंदी शायरी

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना ...

aasi-ghazipuri

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना ...

aasi-ghazipuri

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की ...

aasi-ghazipuri

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की ...

aasi-ghazipuri

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है ...

akbar-allahabadi

वक़्त के साथ साथ इंसाँ का

वक़्त के साथ साथ इंसाँ का

dr.-yasin-aatir

इंक़िलाबी औरत

रणभूमी में लड़ते लड़ते मैं ने कितने साल ...

fahmida-riaz

जाम टकराओ वक़्त नाज़ुक है

जाम टकराओ वक़्त नाज़ुक है ...

saghar-siddiqui

तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं

तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं ...

aashufta-changezi

तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं

तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं ...

aashufta-changezi

آسماں بھی ہے ستم ایجاد کیا!

جولائی ۴۴ء کی ایک ابر آلود سہ پہر جب وادیوں اور مکانوں کی سرخ چھتوں پر گہرا نیلا کہرا چھایا ہوا تھا اور پہاڑ کی چوٹیوں پر تیرتے ہوئے بادل برآمدوں کے...

قرۃالعین-حیدر

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

डालन वाला

हर तीसरे दिन, सह-पहर के वक़्त एक बेहद दुबला पुतला बूढ़ा, घुसे और जगह-जगह से चमकते हुए सियाह कोट पतलून में मलबूस, सियाह गोल टोपी ओढ़े, पतली कमानी वाली छो...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

शोर उस के मकाँ से उठता है

शोर उस के मकाँ से उठता है ...

aarif-zaman

अंगूठी की मुसीबत

(1) ...

मिर्ज़ा-अज़ीम-बेग़-चुग़ताई

मेरा नाम राधा है

ये उस ज़माने का ज़िक्र है जब इस जंग का नाम-ओ-निशान भी नहीं था। ग़ालिबन आठ नौ बरस पहले की बात है जब ज़िंदगी में हंगामे बड़े सलीक़े से आते थे। आज कल की तरह न...

सआदत-हसन-मंटो

क़ैदख़ाना

अबे ओ राम लाल, ठहर तो सही। हम भी आ रहे हैं। ...

अहमद-अली

कमाल-ए-इश्क़ में सोज़-ए-निहाँ बाक़ी नहीं रहता

कमाल-ए-इश्क़ में सोज़-ए-निहाँ बाक़ी नहीं रहता ...

aarif-naqshbandi

कमाल-ए-इश्क़ में सोज़-ए-निहाँ बाक़ी नहीं रहता

कमाल-ए-इश्क़ में सोज़-ए-निहाँ बाक़ी नहीं रहता ...

aarif-naqshbandi

सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था

फिर शाम का अंधेरा छा गया। किसी दूर दराज़ की सरज़मीन से, न जाने कहाँ से मेरे कानों में एक दबी हुई सी, छुपी हुई आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता गा रही थी, ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर
PreviousPage 42 of 642Next