आ अपने दिल में मेरी तमन्ना लिए हुए शौक़-ए-कलाम ओ ज़ौक़-ए-तमाशा लिए हुए दिल ले के ख़ुद को रहते हैं क्या क्या लिए हुए शीशे वही तो हैं मिरी दुनिया लिए हुए महरूमियों पे दिल की मिटा जा रहा हूँ मैं है ख़ाक तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा लिए हुए तारीकी-ए-फ़ज़ा का शिकायत-गुज़ार हूँ सीने में आफ़्ताब-ए-सुवैदा लिए हुए पहले मिरे सहारे पे था कार-ओ-बार-ए-ज़ीस्त अब मैं हूँ ज़िंदगी का सहारा लिए हुए जी चाहता है उम्र-ए-मोहब्बत न ख़त्म हो मर जाइए किसी की तमन्ना लिए हुए अपना वक़ार-ए-इश्क़ कभी आज़मा के देख होगी जबीन-ए-हुस्न भी सज्दा लिए हुए ख़ुश हूँ कि जैसे गोद में है लाल-ए-शब-चराग़ दामन में अपने लाला-ए-सहरा लिए हुए नाश-ए-रवाँ हूँ ज़ीस्त है मेरी फ़रेब-ए-ज़ीस्त फिरता हूँ ज़िंदगी का जनाज़ा लिए हुए जोश-ए-जुनूँ में आलम-वारफ़्तगी न पूछ सहरा से हम गुज़र गए सहरा लिए हुए सर उन के आस्ताँ पे जो पहुँचे तो हो यक़ीं सौदा लिए हुए है कि सज्दा लिए हुए हम तूर पर गए भी तो इस शान से गए मूसा खड़े रहे यद-ए-बैज़ा लिए हुए ऐ हुस्न मेरे हाल में तू भी शरीक हो दोनों जहाँ का बार हूँ तन्हा लिए हुए बे-पर्दा बे-तअय्युन ओ बे-नाम देख उसे वो तो है सिर्फ़ नाम का पर्दा लिए हुए 'सीमाब' क़द्र-दाँ हैं मिरे ख़ान-ए-जाँसठ हाज़िर हुआ हूँ फ़िक्र का हदिया लिए हुए