बहुत तारीक सहरा हो गया है हवा का शोर गहरा हो गया है किसी के लम्स का ये मोजज़ा है बदन सारा सुनहरा हो गया है ये दिल देखूँ कि जिस के चार जानिब तिरी यादों का पहरा हो गया है वही है ख़ाल-ओ-ख़द में रौशनी सी पे तिल आँखों का गहरा हो गया है कभी उस शख़्स को देखा है तुम ने मोहब्बत से सुनहरा हो गया है