आ गए क्या चराग़ आँखों के अर्श पर हैं दिमाग़ आँखों के बूढ़ा होता हूँ अश्क-बारी में कब धुलेंगे ये दाग़ आँखों के ज़िंदगी भर यूँही महकते रहें मेरी बाँहों में बाग़ आँखों के आज के बा'द अगर तुझे देखूँ टूट जाएँ अयाग़ आँखों के आइनों ही में वो छुपा है कहीं मो'तबर हैं सुराग़ आँखों के