तबाह ज़ीस्त मगर एक बाज़ीगर ने की वगर्ना वज्ह न थी टूट कर बिखरने की वो उड़ चुका है तो फिर उस की मान लेते हैं उसे तो ज़िद सी है इल्ज़ाम हम पे धरने की तमाम ख़्वाब परेशाँ थे शब की महफ़िल में न-जाने बात क्या तारों से चश्म-ए-तर ने की वो रथ में आँख की हर पल चमकता रहता है ये रुत है जुगनुओं के ख़ाक पर उतरने की है छेद छेद मिरा दामन-ए-सवाल भी अब अजीब हालत-ए-दिल मेरे जादूगर ने की समाअतों का नशा है कि शोर पायल का ख़िरद भी छीन गई हैं सदाएँ झरने की किताब-ए-वक़्त का हर बाब हिफ़्ज़ कर डाला पढ़ी न मश्क़ मगर क़ौल से मुकरने की नहीं थी ज़ीस्त मुक़द्दर न बच सके वर्ना बहुत सई मिरे मासूम चारागर ने की 'रशीद' हम ने फ़क़ीरी में वक़्त काट लिया अगरचे ताज सजाने की ज़िद भी सर ने की