आ गया कौन सर-ए-बज़्म ये साक़ी बन के ज़िंदगी झूम उठी तुर्फ़ा शराबी बन के एक संगीन हक़ीक़त है मिरा ख़ून-ए-जुनूँ दामन-ए-गुल में महकता है कहानी बन के अब तो महरूमी-ए-दामाँ नहीं देखी जाती तुम बरस जाओ कभी यादों के मोती बन के आज जो शीरीं अदाओं में बसर होती है कल यही जाम में घुल जाएगी तल्ख़ी बन के कू-ब-कू ढूँढेगी इक रोज़ निगाह-ए-दुनिया हम जो क़ुर्बत में तिरी खो गए दूरी बन के आइना जब भी कोई उन के मुक़ाबिल होगा हम उतर जाएँगे अक्स-ए-रुख़-ए-माज़ी बन के टूट जाएँगे बहुत वक़्त के शाने 'नाज़िम' हम बिखर जाएँगे जब काकुल-ए-गेती बन के