आ जाओ कि मिल कर हम जीने की बिना डालें ये बार-ए-हयात ऐ दोस्त उठने का नहीं तन्हा दुनिया पे मुसल्लत है औहाम की तारीकी हम हैं कि जलाए हैं इक शम-ए-यक़ीं तन्हा मुहताज-ए-तवज्जोह हैं कुछ और मसाइल भी क्यूँ ज़ेहन में फिरती है इक नान-ए-जवीं तन्हा हर मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ अब पर्वाज़ पे माइल है गुलशन में न रह जाए सय्याद कहीं तन्हा सज्दे दर-ए-जानाँ पर लाखों ने किए लेकिन मे'आर-ए-वफ़ा ठहरी मेरी ही जबीं तन्हा इक हुस्न-ए-तसव्वुर है जो ज़ीस्त का साथी है वो कोई भी मंज़िल हो हम लोग नहीं तन्हा नज़दीक 'हफ़ीज़' इस के रिंद आएँ तो क्या आएँ जागीर है ज़ाहिद की सरमाया-ए-दीं तन्हा