भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें ज़िंदगी तू ही बता कब तक तिरा पीछा करें रू-ए-गुल हो चेहरा-ए-महताब हो या हुस्न-ए-दोस्त हर चमकती चीज़ को कुछ दूर से देखा करें बे-नियाज़ी ख़ुद सरापा इल्तिजा बन जाएगी आप अपनी दास्ताँ में हुस्न तो पैदा करें दिल कि था ख़ुश-फ़हम आगाह-ए-हक़ीक़त हो गया शुक्र भेजें या तिरी बेदाद का शिकवा करें मुग़्बचों से मोहतसिब तक सैकड़ों दरबार हैं एक साग़र के लिए किस किस को हम सज्दा करें तिश्नगी हद से बढ़ी है मश्ग़ला कोई नहीं शीशा-ओ-साग़र न तोड़ें बादा-कश तो क्या करें दूसरों पर तब्सिरा फ़रमाने से पहले 'हफ़ीज़' अपने दामन की तरफ़ भी इक नज़र देखा करें