आ कि चाहत वस्ल की फिर से बड़ी पुर-ज़ोर है आ कि दिल में हसरतों ने फिर मचाया शोर है आ कि अब तो दूर तक ख़ुशबू की चादर बिछ गई आ कि रुख़ बाद-ए-सबा का अपने घर की ओर है आ कि फिर से चाँद पर दिलकश जवानी आ गई आ कि फिर से आज-कल अंगड़ाइयों का ज़ोर है आ कि कलियों के चटख़ने का वो मौसम आ गया आ कि दिल में धड़कनों का इक अनोखा शोर है आ कि जुगनू कर रहे रातों में तीखी रौशनी आ कि फिर से रक़्स में काली घटा घनघोर है आ कि फिर बादल तिरे आने की देते हैं ख़बर आ कि फिर अब मस्तियों में अपने मन का मोर है आ कि अब तो दम भी है जैसे लबों तक आ गया आ कि तेरे हाथ में अब ज़िंदगी की डोर है आ कि मौसम का असर 'आज़िम' पे अब होने लगा आ कि ताक़त ज़ब्त की अब हो चली कमज़ोर है