अबस है पेश-ए-अर्बाब-ए-सुख़न अज़्म-ए-सुख़न मुझ को वफ़ा कहने न देगी क़िस्सा-ए-रंज-ओ-मेहन मुझ को क़फ़स में मिल गया है इन दिनों कुछ लुत्फ़ ही ऐसा कि भूले से नहीं आती कभी याद-ए-चमन मुझ को ख़िज़ाँ की आफ़तें फिरती हैं अब तक मेरी नज़रों में बहार-ए-चंद-रोज़ा क्या दिखाता है चमन मुझ को बुत-ए-तर्रार से जब शिकवा-ए-बेदाद करता हूँ सुनाता है वो ज़ालिम सर-गुज़श्त-ए-कोहकन मुझ को वो हँस कर देख लेते हैं जो कूचे से गुज़रता हूँ मुबारकबाद 'बेख़ुद' मेरा ये दीवाना-पन मुझ को