आ मिरी चश्म-ए-पुर-ख़ुमार में आ आ मिरे सीना-ए-फ़िगार में आ आ कि तेरे बग़ैर कैफ़ नहीं मेरी ग़म आफ़रीं बहार में आ दिल को तेरे सदा क़रार नहीं आ इस उजड़े हुए दयार में आ रूह को ताब-ए-इंतिज़ार नहीं मेरे तरसे हुए कनार में आ दीदा-ए-तर पुकारते हैं तुझे आ कभी बज़्म-ए-सोगवार में आ आज 'मज़हर' तुझे पुकारता है आज आ सहन-ए-लाला-ज़ार में आ