आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ सोए हुए दर्द को जगाऊँ दिल फटने लगा है यादशब-ए-महबूब आ तुझ को ही अब गले लगाऊँ जुज़ तेरे न सुन सके कोई भी इस लय में तुझे मैं गुनगुनाऊँ ऐ नग़्मा-तराज़ जिस्म-ए-मौज़ूँ मिस्रे की तरह तुझे उठाऊँ जो गुज़रा है तेरी ख़ल्वतों में कैसे वो ज़माना भूल जाऊँ हो बस में मिरे तो संग-दिल को हालात का आईना दिखाऊँ