आएँ वो लाख देखने वालों के सामने उठती है आँख महर-जमालों के सामने मुमकिन नहीं जवाब तिरी चश्म-ए-मस्त का ये फ़ैसला हुआ है ग़ज़ालों के सामने तन्हा न एक हज़रत-ए-मूसा को ग़श हुआ ठहरा है कौन बर्क़-जमालों के सामने हो जाए हुस्न को न किसी की नज़र कहीं अच्छे नहीं हैं देखने वालों के सामने दुनिया में नेक-ओ-बद तो कोई चीज़ ही नहीं होना है सब को अपने ख़यालों के सामने