बा'द मुद्दत के वो मिला है मुझे डर जुदाई का फिर लगा है मुझे आ गया हूँ मैं दस्तरस में तिरी अपने अंजाम का पता है मुझे क्या करूँ ये कभी नहीं कहता जो करूँ उस पे टोकता है मुझे तुझ से मिल के मैं जब से आया हूँ हर कोई मुड़ के देखता है मुझे अब तलक कुछ वरक़ ही पलटे हैं तुझ को जी भर के बांचना है मुझे ठोकरें जब कभी मैं खाता हूँ कौन है वो जो थामता है मुझे सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे वो भी ऐसे ही सोचता है मुझे मैं तुझे किस तरह बयान करूँ ये करिश्मा तो सीखना है मुझे नींद में चल रहा था मैं 'नीरज' तू ने आ कर जगा दिया है मुझे