आ गया वस्ल में उन को जो पसीना ठंडा मुझ से बोले कि हुआ अब तो कलेजा ठंडा शो'ला-ए-दाग़ को आहों से बढ़ा देते हैं सूरत-ए-शम्अ' वो करते हैं कलेजा ठंडा मैं जो रोता हूँ तो हँस हँस के ये फ़रमाते हैं तेरी आहों ने किया मेरा कलेजा ठंडा ख़ून मुझ पर न हो परवाने जले जाते हैं कर चराग़-ए-सर-ए-मरक़द को ख़ुदाया ठंडा बंद बुलबुल की हुईं कुंज-ए-क़फ़स में आँखें सेहन-ए-गुलशन से जो आया कोई झोंका ठंडा सर्द नाले जो किए फ़ुर्क़त-ए-गुल में शब को आह-ए-बुलबुल से हुआ बाग़ का रस्ता ठंडा सर्द आहें जो भरीं बैठ के साहिल पे कभी और भी हो गया दरिया का किनारा ठंडा शम्अ'-रू गर्मियाँ क्यूँकर न करें महफ़िल में दिल जलें और के उन का हो कलेजा ठंडा आग दिल में है क़यामत की लगी ऐ जर्राह आतिशीं दाग़ पे रख दे कोई फाहा ठंडा वस्ल बे-हिज्र के होता नहीं 'फ़ाख़िर' को नसीब दिल जलाते हैं तो करते हैं कलेजा ठंडा