आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में कुछ से कुछ है आन ही की आन में याँ इशारात-ए-ग़लत पर ज़िंदगी वाँ अदा है और ही सामान में तेग़-ए-क़ातिल है रग-ए-गर्दन मिरी आब-ए-पैकाँ दम तन-ए-बे-जान में या तो क़ातिल हो गया रहम-आश्ना या पड़े होंगे कहीं मैदान में अश्क अपने फिर फिरा कर हर तरफ़ आए आख़िर तेरे ही दामान में हाए कैसे कैसे वारस्ता-मिज़ाज सर-निगूँ दम बंद हैं ज़िंदान में काबा आँखों में समाता ही नहीं क्या बुतों ने कह दिया कुछ कान में आँख के उठते ही उठते कुछ न था हम चले अरमान ही अरमान में दैर-ओ-काबा पर नहीं मौक़ूफ़ कुछ और ही कुछ शान है हर शान में गिर्या-ए-सद-सिर्री और हम कम-हौसला कश्ती अपनी आ गई तूफ़ान में जन्नत ओ दोज़ख़ से क्या उम्मीद-ओ-बीम हसरतें सी हसरतें हैं जान में ख़ुद-परस्ती और इस्लाम-आफ़रीं काबा-ए-आशिक़ है कुफ़रिस्तान में ऐ 'क़लक़' कल तक गदा-ए-दैर थे आज दा'वे हो गए ईमान में