आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर गर्मी-ए-रू-ए-यार का अक्स भी राएगाँ गया सतह पे ताज़ा फूल हैं कौन समझ सका ये राज़ आग किधर किधर लगी शोला कहाँ कहाँ गया राज़-ए-ख़िरद हो कुछ भी अब राज़-ए-जुनूँ तो ये है बस आँख थी बे-बसर रही तीर था बे-कमाँ गया उम्र-ए-रवाँ की मंज़िलें तूल-ए-तवील मुख़्तसर आप भी हम-सफ़र रहे ग़ैर भी हम-इनाँ गया