आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है उस बुत-ए-नाज़ का दिल फिर भी तमन्नाई है मेरी आँखों से टपकते हैं लहू के आँसू आज बे-लौस मोहब्बत की भी रुस्वाई है लब पे फिर नाम वही हुस्न वही आँखों में ऐ दिल-ए-ज़ार यही तेरी शकेबाई है मज़हका-खेज़ है अंदाज़-ए-तकल्लुम उन का मय-ए-उल्फ़त मगर आँखों में उतर आई है 'सानी'-ए-ज़ार तू अब और करेगी क्या क्या आस्ताने पे मुसलसल तो जबीं-साई है